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इस आर्टिकल में आप यह जान सकेंगे कि; ओजोन परत में छेद कैसे होता है? और उससे भी बड़ा सवाल कि; क्या ओजोन परत का छेद, अपने आप ठीक हो सकता है? मार्च 2020 में उत्तरी गोलार्द्ध में ; आर्कटिक क्षेत्र के ऊपर, ओजोन परत में एक बहुत बड़ा छेद देखा गया था. जो कि; रहस्यमयी तरीके से, अप्रैल में आते आते गायब हो गया. क्या वैज्ञानिकों ने इसके लिए प्रयास किये? या फिर, यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है? आइये जानते हैं –
मार्च 2020 के आखिरी दिनों में ; वैज्ञानिकों ने उत्तरी गोलार्ध में , आर्कटिक क्षेत्र के ऊपर, ओजोन परत में एक बहुत बड़ा छेद देखा. जिसका आकार ; 10 लाख किलो मीटर था, पूरे ग्रीनलैंड जितना। परन्तु ; अप्रैल की शुरुआत में ही, यह कम हो गया। कैसे ? क्या लॉक डाउन था इसकी वज़ह या फिर कुछ और ! आइये जानते हैं
आखिर ये ओजोन परत है क्या ? और होती कहाँ है?
ओजोन एक गैस होती है। यह गैस; पृथ्वी के चारों ओर एक निश्चित ऊंचाई पर समताप मण्डल (Stratosphere) में एक मोटी परत के रूप में रहती है।
पृथ्वी के चारों ओर; लगभग 640 किमी की ऊंचाई तक, वायुमंडल पाया जाता है। यह वायुमंडल; विभिन्न परतों में, बंटा हुआ होता है। इन परतों का विभाजन; वायु में उपस्थित, आद्रता (जलवाष्प) के आधार पर किया जाता है. साथ ही; गैसों का घनत्व तथा तापमान आदि को भी, शामिल किया जाता है. इन्हीं परतों में से; Stratosphere (समताप मण्डल) में, ओज़ोन गैस 22 – 50 किमी की ऊंचाई पर पायी जाती है।
वायुमंडल में और भी परते हैं. परन्तु ओजोन परत को ही क्यों मिलता है – Importance?
ओजोन परत; यूँ तो, पृथ्वी की सतह से काफी ऊंचाई पर स्थित है. लेकिन; यह सूर्य से निकलने वाली, हानिकारक पराबैंगनी किरणों से हमारी रक्षा करती है।
😲😲 WHAT
जी हाँ. दोस्तों ! पराबैंगनी किरणें जिन्हें हम Ultraviolet Rays भी कहते हैं, तीन प्रकार की होती हैं।
- First (UV-A) – यह ओजोन परत के द्वारा अवशोषित नहीं की जाती है।
- Second (UV-B) – यह लगभग ओजोन परत द्वारा अवशोषित कर ली जाती है।
- Third (UV-C) – यह बहुत खतरनाक होती है। यह; ओज़ोन द्वारा, पूरी अवशोषित की जाती है। ओजोन परत में छेद इसी किरण के लिए खतरनाक है।
इसमें; UV-B हमारी त्वचा में मौजूद प्रोटीन, “7-DHC” के साथ अभिक्रिया करके, विटामिन D का निर्माण करता है. यदि; विटामिन D ना मिले, तो इंसान दीर्घायु नहीं हो सकता है. क्यूंकि; हड्डियां और मांशपेशियां, कमजोर पड़ जाएँगी।
तो देखा आपने UV-B हमारे लिए कितना Important है। यह हमें लम्बी आयु प्रदान करता है।
लेकिन
ओजोन परत में कमी या छेद होने से ; UV-C किरणें धरती पर आ जाएँगी . जिससे ; मानवों सहित सभी जीवों में, त्वचा कैंसर और आँखों की बीमारियां हो सकती हैं. प्लैंकटन में कमी ; तथा पौधों में क्षति से, पारिस्थितिक तंत्र बिगड़ जायेगा.
यही कारण है कि ओजोन परत को इतना अधिक महत्व दिया जा रहा है।
परन्तु ओजोन परत में छेद होता कैसे है?
ओजोन परत में छेद या कमी के बारे में बताने से पहले ; हम ये जानते हैं कि,ओज़ोन गैस का निर्माण होता कैसे है ?
यहाँ पर भी Ultra-violet किरणों का योगदान होता है. कितनी विचित्र घटना है कि ; Ultra-violet किरणों के कारण बनी ओज़ोन ,स्वयं , Ultra-violet किरणों को रोकती है।है ना विचित्र !!
ओजोन गैस का निर्माण
दरअसल; 80 – 100 किमी की ऊंचाई पर, ऑक्सीजन स्वतः ही 2 अलग अलग परमाणुओं में टूट जाती है. ऐसा ; सूर्य की पराबैंगनी किरणों (Ultra-violet Rays) की उपस्थिति के कारण, होता है.



जब एक अकेला ऑक्सीजन का परमाणु; ऑक्सीजन के 2 परमाणुओं के साथ अभिक्रिया करता है, तो उससे ओजोन का निर्माण होता है।



यही ओजोन जब पुनः ऑक्सीजन के अकेले परमाणु से टकराती है, तो ओज़ोन, ऑक्सीजन में बदल जाती है।



देखा आपने; ओज़ोन तो खुद ही बन रही है, और खुद ही समाप्त हो रही है. तो Tension काहे को लेना। 😎😎 ये ओज़ोन के बनने और नष्ट होने की स्वाभाविक प्रक्रिया है।
जानिए
"आकाश में बिजली किस प्रकार बनती है?"
परन्तु असली चिंता का कारण प्राकृतिक नहीं, मानवीय है.
प्राकृतिक कारणों को यदि छोड़ दें; तो ओजोन परत को सबसे ज्यादा नुकसान पहुँचता है – क्लोरीन, फ्लोरीन से। क्लोरीन, फ्लोरीन तथा कार्बन से बने यौगिक क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFC) तथा हैलोन हैं।
ये; CFC ट्यूबलेस टायरों, रेफ्रिजिटर्स, A.C., इंसुलेशन फोम आदि से निकलते हैं।
लेकिन ; 1987 में मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के बाद, CFC के उत्पादन पर रोक लगा दी है. अब ; CFC के स्थान पर , HFC (Hydroflurocarbon) प्रयोग किये जाते हैं.
CFC के अलावा; मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड आदि गैसें भी जिम्मेदार हैं. विकसित देशों के द्वारा इस गैसों का उत्पादन अत्यधिक किया जाता है।
अगर ; विकसित देशों से इन गैसों का उत्सर्जन , अधिक होता है. तो ओज़ोन में छेद ;इन्हीं देशों के ऊपर होना चाहिए था ! वह ; उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों के ऊपर ही, क्यों होता है ?
Polar Vortex के कारण ध्रुवों के ऊपर ओजोन परत क्षीण होती है
उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों के ऊपर ही ओजोन परत के क्षीण होने के पीछे ये कारण हैं –
- इन दोनों ध्रुवों के ऊपर; वर्ष के 6 महीने दिन और 6 महीने रात होती है. जिस कारण; सूर्य की किरणें, केवल 6 महीने ही प्राप्त होती हैं. साथ ही; इन ध्रुवों पर, सूर्य की किरण बहुत तिरछी पड़ती है. चूँकि; ओज़ोन का निर्माण, सूर्य की Ultra-violet किरणों के कारण, ऑक्सीजन के टूटने से होता है. अतः; यहाँ पर ओज़ोन का निर्माण ही कम होता है।
- अधिकांश ओज़ोन का निर्माण; वायुमण्डल में, उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र के ऊपर होता है। यहीं से यह; वायुमंडलीय परिसंचरण के द्वारा, ध्रुवों और अन्य स्थानों तक जाती है।
- Polar Vertex (ध्रुवीय लंबवत) – पोलर वर्टेक्स नाम की यह घटना; पृथ्वी के दोनों ध्रुवों पर उत्पन्न होने वाले, व्यापक चक्रवातों की घटना है. यह दरअसल; ध्रुवीय जलवायु की सामान्य विशेषता है. इसमें; जब ये उत्पन्न होता है, तो लम्बे समय तक ध्रुवों के आस पास की जलवायु प्रभावित होती है. और; सबसे ज्यादा प्रभावित करता है, ओजोन परत को. जब; पोलर वर्टेक्स मजबूत होता है, तो पछुवा पवनों की रफ़्तार, बहुत तेज़ हो जाती है. जिससे; ओज़ोन परत को नुकसान पहुँचता है।
निष्कर्ष
मार्च 2020 के अंतिम दिनों से; उत्तरी गोलार्ध में, यही पोलर वर्टेक्स बहुत प्रभावशाली हो गया था. जिस कारण; आर्कटिक क्षेत्र के ऊपर ओजोन परत, बहुत ही कमजोर हो गयी थी. यह; लगभग 10 लाख वर्ग किमी के क्षेत्र में, फैला हुआ था. परन्तु ; अप्रैल तक इसका प्रभाव कम होने से, इसमें खुद से ही सुधार होने लगा।
जैसा कि मैंने आपको बताया था कि ओज़ोन गैस स्वयं बनती है और स्वयं नष्ट भी होती है।
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Top FAQ for ओजोन परत
ओजोन एक गैस होती है। यह गैस; पृथ्वी के चारों ओर एक निश्चित ऊंचाई पर समताप मण्डल (Stratosphere) में एक मोटी परत के रूप में रहती है।
ओजोन गैस सूर्य से निकलने वाली हानिकारक पराबैंगनी किरणों से पृथ्वी की रक्षा करता है.
पराबैंगनी किरणों से हमें विटामिन डी मिलता है.
पोलर वर्टेक्स नाम की यह घटना; पृथ्वी के दोनों ध्रुवों पर उत्पन्न होने वाले, व्यापक चक्रवातों की घटना है. यह दरअसल; ध्रुवीय जलवायु की सामान्य विशेषता है. इसमें; जब ये उत्पन्न होता है, तो लम्बे समय तक ध्रुवों के आस पास की जलवायु प्रभावित होती है. और; सबसे ज्यादा प्रभावित करता है, ओजोन परत को.जब; पोलर वर्टेक्स मजबूत होता है, तो पछुवा पवनों की रफ़्तार, बहुत तेज़ हो जाती है. जिससे; ओज़ोन परत को नुकसान पहुँचता है।
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