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यह आर्टिकल दुनिया के नक़्शे पर 8 वें नए महाद्वीप; जीलैंडिया के बारे में है. न्यूजीलैंड के वैज्ञानिकों ने; इस नए महाद्वीप का Tectonic, और Bathymetric नक्शा, तैयार किया है. दरअसल; इस नए महाद्वीप की खोज का प्रयास, UN के Sustainable Goals 14 के तहत, किया गया है. जिसमें; “Seabed 2030 Project” के अंतर्गत न्यूजीलैंड को South & West प्रशांत महासागर का नक्शा तैयार करना है. तो आखिर क्या है ? UN के Sustainable Goals ! और “Seabed 2030 Project” के अंतर्गत किस प्रकार नए महाद्वीप जीलैंडिया की खोज की गयी? आइये जानते हैं –
GSA (The Geological Society of America) Today Archive Journal में ; प्रशांत महासागर के दक्षिणी पश्चिम में एक नए महाद्वीप – Zealandia के बारे में बताया गया है. यह महाद्वीप ; ऑस्ट्रेलिया से , CATO गर्त के द्वारा अलग होता है. यह; 4.9 मिलियन वर्ग किमी (49 लाख वर्ग किमी) क्षेत्र में फैला हुआ है और , Continental Crust से निर्मित है.
आइये विस्तार से समझते हैं –
आखिर आज तक जीलैंडिया महाद्वीप कैसे सामने नहीं आ सका ?
Zealandia महाद्वीप की खोज की शुरुआत!
Zealandia महाद्वीप की; खोज की शुरुआत, “Seabed 2030 Project” के द्वारा हुई. यह प्रोजेक्ट; जापान के Nippon Foundation और GEBCO (General Bathymetric Chart of the Oceans) के सहयोग से शुरू हुआ है. Seabed 2030 Project का उद्देश्य; सन 2030 तक महासागरों की तली का मानचित्र तैयार करना है.
Bathymetry के जरिये; महासागरों की तली का मानचित्र , बनाया जायेगा.
Bathymetry क्या है ?
महासागर की गहराइयों में पाए जाने वाले विभिन्न स्थालाकृतियों की आकृति और उनकी ऊँचाइयों का अध्ययन, Bathymetry करता है.



जैसे; धरातल के ऊपर, Contour के माध्यम से विभिन्न स्थलाकृतियों की ऊँचाइयों को जानते हैं. उसी प्रकार समुद्र के अन्दर; विभिन्न गहराइयों में मौजूद स्थलाकृतियों की ऊँचाइयों को जानने के लिए, Bathymetry का सहारा लिया जाता है.
अब सवाल यह उठता है कि, आखिर यह प्रोजेक्ट शुरू किया किसने?
U.N. Sustainable Goals #14 के द्वारा इसकी शुरुआत हुई !
“Seabed 2030 Project”; की शुरुआत, जून 2017 में, United Nation Ocean Conference में हुई. इस Conference में; United Nation के 14 वें Goals में; – “महासागर, सागर और जलीय संसाधनों का संरक्षण और सतत उपयोग” शामिल किया गया. जिसके परिणाम स्वरुप; Zealandia महाद्वीप सामने आया.
उल्लेखनीय है कि United Nation Sustainable Goals की list 17 है.
Seabed 2030 Project के अंतर्गत 4 Regional Centers और 1 Global Center है.
Regional Centers | जिन महासागरों का Bathymetric Data तैयार करना है |
Alfred Wegener Institute (AWI), Germany | Southern Ocean |
National Institute of Water and Atmospheric Research (NIWA), New Zealand | South & West Pacific Ocean |
Lamont Doherty Earth Observatory (LDEO), Columbia University, USA | Atlantic & Indian Ocean |
Stockholm University (SU), Sweden and the Center for Coastal and Ocean Mapping at the University of New Hampshire (UNH), USA | Arctic & North Pacific Ocean |
Global Center | |
British Oceanographic Data Centre (BODC), National Oceanography Centre (NOC), UK |
तो; इस प्रकार न्यूजीलैंड को, दक्षिणी और पश्चिमी प्रशांत महासागर की तली का, मानचित्र बनाना है. इसी के परिणामस्वरूप; न्यूजीलैंड के वैज्ञानिकों ने प्रशांत महासागर में एक नए महाद्वीप की खोज की.
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Zealandia महाद्वीप का विस्तार
Zealandia महाद्वीप की खोज में; न्यूजीलैंड के वैज्ञानिकों का महत्वपूर्ण योगदान है. हालाँकि इसकी चर्चा 1995 से शुरू हो गयी थी. किन्तु; इसकी खोज 2017 तक चली. Finally; उसके बाद Zealandia महाद्वीप के बारे में पूरी दुनिया को पता लग सका.



आइये जानते हैं Zealandia महाद्वीप के बारे में –
CATO गर्त अलग करता है Zealandia को
CATO गर्त; ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप और जीलैंडिया महाद्वीप को अलग करती है. यह गर्त; लगभग 25 किमी लम्बी है और 3600 मीटर गहरी है.
भौगोलिक विस्तार
इस महाद्वीप का विस्तार; 4.9 मिलियन वर्ग किमी (49 लाख वर्ग किमी) है. यानि; यह भारत के क्षेत्रफल से, 17 लाख वर्ग किमी अधिक है. क्षेत्रफल में; यह ऑस्ट्रेलिया के 2/3 भाग के बराबर है. और अगर; ग्रीनलैंड द्वीप से तुलना की जाय, तो Zealandia में पूरे 2 ग्रीनलैंड समां जायेंगे.
गोंडवाना लैंड से अलग हुआ महाद्वीप
वैज्ञानिकों का मानना है कि Zealandia; गोंडवाना लैंड से, 7.9 करोड़ साल पहले टूट कर अलग हुआ था.
Zealandia महाद्वीप 94 % डूबा हुआ है
वैज्ञानिकों के अनुसार; महाद्वीप का 94 % भू भाग, प्रशांत महासागर में डूबा हुआ है. यह महाद्वीप; लगभग 2.50 करोड़ साल पहले, प्रशांत महासागर में समां गया था.
लेकिन; इस महाद्वीप का कुछ हिस्सा, बौल्स पिरामिड नामक चट्टान के रूप में; लार्ड हॉवे आइलैंड के पास, समुद्र से बाहर की ओर निकली हुई है. जिस कारण; इस बात की जानकारी मिली कि, इसके नीचे एक महाद्वीप है.
आखिर अब सवाल उठता है कि; Zealandia को एक महाद्वीप क्यों माना गया ?
जबकि उसका 94 % से अधिक भाग समुद्र के नीचे है .
तो क्या महाद्वीप को मानने के कुछ आधार हैं ? आइये जानते हैं –
Zealandia को महाद्वीप मानने के आधार
Zealandia को महाद्वीप मानने के लिए विज्ञानिकों ने निम्न आधार माने हैं –
1. Crust के आधार पर –
Crust, पृथ्वी की सबसे उपरी सतह को कहते हैं.



Crust भी 2 तरह की होती हैं –
- Continental Crust
- Oceanic Crust
Continental Crust; Oceanic Crust की तुलना में, अधिक मोटी होती है. इसकी; औसतन मोटाई, 30 – 45 किमी होती है. साथ ही इसमें भूकंपीय P waves की गति 6.5 किमी/सेकंड होती है.
वहीँ Oceanic Crust की औसतन मोटाई 5-10 किमी होती है. और इसमें P waves की गति 7.5 किमी/सेकंड होती है.
Zealandia महाद्वीप की औसतन मोटाई 30-45 किमी है . और यहाँ पर P waves की गति 7 किमी/सेकंड से कम है.
इस प्रकार यह महाद्वीप की श्रेणी में आता है.
2. ऊंचाई के आधार पर –
सामान्यतः महाद्वीप; Oceanic Crust की तुलना में, काफी अधिक ऊँचे होते हैं. अतः ऊंचाई; दूसरा आधार बनता है, किसी भी भू भाग को महाद्वीप मानने का.
Zealandia महाद्वीप की औसत ऊंचाई 1100 मीटर है. जबकि; इसके सबसे ऊँचे चोटी की ऊंचाई 3724 मीटर है.
Geology के आधार पर –
Oceanic Crust में अत्यधिक दबाव के कारण; यहाँ की चट्टानें, बेसाल्ट और गैब्रो की होती हैं. यह चट्टानें भी; जुरासिक से लेकर, होलोसीन युग की होती है. जो कि अपेक्षाकृत नवीन हैं.
जबकि; Continental Crust में चट्टानें, बहुत पुरानी होती हैं. इसमें; Archean से लेकर Holocene युग की आग्नेय, अवसादी और रूपांतरित सभी प्रकार की चट्टानें मिलती हैं.
इस आधार पर देखें तो; Zealandia में आग्नेय से लेकर अवसादी और रूपांतरित, सभी प्रकार की चट्टानें उपलब्ध हैं. जो इसे; Oceanic Crust से अलग करती हैं.
निष्कर्ष
महाद्वीप के बारे में अभी भी शोध जारी है. इस महाद्वीप के बारे में; और अधिक जानकारी के लिए , जोआइद्स रेसोल्यूशन नामक जहाज वहां भेजा जा रहा है. जो; समुद्र के नीचे से चट्टान के नमूने और अन्य जानकारी इकठा करेगा.
Top FAQ for Zealandia
“Seabed 2030 Project”
2030 तक महासागरों की तली का मानचित्र तैयार करना है.
UN Ocean Conference, जून 2017 में हुई.
UN Sustainable Goal 14 के अंतर्गत
“महासागर, सागर और जलीय संसाधनों का संरक्षण और सतत उपयोग”
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